इसके चलते जहां पेय पदार्थ कंपनियों पर संकट मंडरा रहा है। वहीं आम आदमी और रेहड़ी-पटरी विक्रेताओं की चिंता भी बढ़ गई है। क्या है सिंगल यूज प्लास्टिक और कैसे यह खतरनाक है? सरकार ने इस पर बैन क्यों लगाया है? इसके विकल्प क्या हैं? भास्कर वुमन की रिपोर्ट में पढ़िए...
पर्यावरणविद् विक्रांत तोंगड़ बताते हैं, 'प्लास्टिक पर हम इस कदर निर्भर हैं कि पीने के लिए पानी से लेकर लंच बॉक्स, दूध-दही के पैकेट, चाय-कॉफी, चिप्स, नमकीन, बिस्कुट और फल-सब्जी घर लाने तक यह हमारी दिनचर्या का हिस्सा है। इसकी वजह यह भी है कि इसे आसानी कहीं भी लाया-ले जाया जा सकता है। यह बाजार में मौजूद अन्य विकल्पों की तुलना में सस्ती, सुंदर और टिकाऊ है, जबकि इसके विकल्प जैसे कांच, कागज और लकड़ी के उत्पाद अब भी बेहद महंगे हैं। साथ ही इन्हें लाने-ले जाने के लिए भी भारी मशक्कत करनी पड़ती है।
तोगड़े कहते हैं कि प्लास्टिक का इस्तेमाल करते वक्त लोग इसके दुष्प्रभावों से अनजान बने हुए हैं। यह पर्यावरण और सेहत दोनों के लिए घातक है। हम लोगों को समझना होगा कि प्लास्टिक जहां पर्यावरण को प्रदूषित और भूजल को दूषित कर रही है। वहीं जलीय जीवों की जान ले रही है। देश में प्लास्टिक कचरे के पहाड़ बन गए हैं, जिनके आसपास रहने वालों का जीना मुहाल हो गया है। इसलिए अब इसके विकल्प तलाशने ही होंगे।'
सिंगल यूज प्लास्टिक: कौन-कौन से सामान हुए बैन?
- ईयर बड स्टिक
- प्लास्टिक झंडे
- आइसक्रीम स्टिक
- कप-ग्लास
- कांटा-चम्मच
- मिठाई के डिब्बे पर लगने वाली पन्नी
- सिगरेट पैकेट रैपर
- बलून स्टिक
- लॉलीपॉप स्टिक
- थर्माकोल के सजावटी सामान
- प्लेट्स, बाउल
- स्ट्रॉ
- इन्विटेशन कार्ड
- पीवीसी बैनर
(100 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक)
सिंगल यूज प्लास्टिक क्या है?
सिंगल यूज प्लास्टिक यानी ऐसे प्रोडक्ट जिनका एक बार इस्तेमाल करने के बाद फेंक दिया जाता है। इसे आसानी से डीकंपोज और रीसाइकल भी नहीं किया जा सकता है। यही वजह है कि कचरा और प्रदूषण बढ़ाने में सिंगल यूज प्लास्टिक अहम है। आज से बैन होने वाले सामान में 100 माइक्रोन से कम मोटाई के प्लास्टिक बैनर शामिल हैं। गुब्बारा, फ्लैग, कैंडी, ईयर बड्स के स्टिक और मिठाई बॉक्स में यूज होने वाली क्लिंग रैप्स भी शामिल हैं। यही नहीं केंद्र सरकार ने कहा है कि 120 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक बैग को भी 31 दिसंबर 2022 से बंद कर दिया जाएगा।
क्यों लगानी पड़ी पाबंदी?
प्रदूषण फैलाने में प्लास्टिक कचरा सबसे बड़ा कारक है। केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, देश में 2018-19 में 30.59 लाख टन और 2019-20 में 34 लाख टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा जनरेट हुआ था। प्लास्टिक न तो डीकंपोज होती है और न ही इसे जलाया जा सकता है, क्योंकि इससे जहरीला धुआं और हानिकारक गैसें निकलती हैं। ऐसे में रीसाइक्लिंग के अलावा स्टोरेज करना ही एकमात्र उपाय होता है।
प्लास्टिक अलग-अलग रास्तों से होकर नदी और समुद्र में पहुंच जाता है। प्लास्टिक सूक्ष्म कणों में टूटकर पानी में मिल जाती है, जिसे हम माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं। ऐसे में नदी और समुद्र का पानी भी प्रदूषित हो जाता है। यही वजह है कि प्लास्टिक वस्तुओं पर बैन लगने से भारत अपने प्लास्टिक वेस्ट जेनरेशन के आंकड़े में कमी ला सकेगा।